चारा विकास

चारा विकास

चारा विकास कार्यक्रम

अ.    हरा चारा उत्पादन वृद्धि

हरा चारा पशुओं के लिए पोषक तत्वों का एक किफायती स्त्रोत है। परंतु, देश में इसकी उपलब्धता सीमित है। चारे की खेती के लिए सीमित भूमि के कारण, चारा फसलों एवं आम चरागाह भूमि से चारे की उत्पादकता में सुधार पर ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत है। साथ ही अतिरिक्त उत्पादित हरे चारे के संरक्षण के तरीकों को प्रदर्शित करना होगा जिससे कि हरे चारे की कमी के समय पर इसकी उपलब्धता बढ़ाई जा सके।

  1. बेहतर चारा बीज उत्पादन कार्यक्रमः-

    चारा फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए बीज सबसे महत्वपूर्ण निवेश हैं। किसानों को गुणवत्ता युक्त बीजों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए, सात नई बीज प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना से गुणवत्ता युक्त बीजों का उत्पादन बढ़ाया जाएगा। बीज इकाइयों में उत्पादन, प्रसंस्करण तथा गुणवत्ता युक्त चारा बीज का विपणन शामिल है तथा इसमें बीज सफाई और ग्रेडिंग मशीनें, इमारतें तथा मानव संसाधन भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त 8000 मी टन प्रमाणित/सत्यता से लेबल लगे चारा बीज, परियोजना के छठे वर्ष के अंत तक में उत्पादन करने का लक्ष्य है। यह चारा बीज उत्पादन पंजीकृत बीज उत्पादकों के माध्यम से मानक बीज उत्पादन प्रोटोकोल का पालन करके किया जाएगा।

  2. साइलेज बनाने का प्रदर्शन

    वर्ष भर गुणवत्ता युक्त चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, साइलेज, को लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है जोकि अतिरिक्त मात्रा में उपलब्ध हरे चारे के  संरक्षण का तरीका है । साइलेज  बनाने से बड़ी मात्रा में हरा चारा लंबी अवधि के लिए संरक्षित किया जा सकता है । इस प्रक्रिया में चारे की गुणवत्ता और स्वाद का अधिक नुकसान नहीं होता । साइलेज में करीब 65-70 प्रतिशत नमी होती है तथा यह वायु रहित अवस्था में  हरे चारे में उपलब्ध शर्करा के किण्वन के माध्यम से संरक्षित होता है। पशुओं को हरे चारे की जगह साइलेज खिलाया जा सकता है।

  3. आम चरागाह भूमि में चारा उत्पादन का प्रदर्शन

    चरागाह भूमि ग्रामीण लोगों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उन्हें यहां से चारा, ईंधन और पेयजल सार्वजनिक रूप से मिलता है। परंतु, इस तरह की भूमि में स्थानीय लोगों द्वारा अधिक चराई तथा अति दोहन के कारण बिगाड़ा जा रहा है।  ऐसी भूमि पर जलवायु के अनुरूप वैज्ञानिक तरीकों से पुनः चारा उत्पादन का प्रदर्शन करना होगा। यह ग्रामीण स्तर पर संस्थागत व्यवस्था को मजबूत बनाने के माध्यम से किया जा सकता है। ऐसी भूमियों पर उच्च उपज देने वाली चारा फसलें, घासें और चराई उपयुक्त दलहनी फसलों को लगाकर चारा उत्पादन काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है। वन-चरागाह /उद्यान- चरागाह प्रणाली के तहत एकीकृत पद्धति से खेती की फसलों, घास, पेड़ और झाड़ियों को उगाकर इस प्रकार की जमीन की कुल उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।

ब.    हरा चारा उत्पादन वृद्धि

  1. फसल अवशेष काटने की मशीन

    कृषि श्रमिकों के बढ़ते दामों के कारण अनाजवाली फसलों को काटने की मशीनों का उपयोग बढ़ता जा रहा है। इससे खेतों में सूखे चारे की बर्बादी होती है खासकर जब ट्रैक्टर या इंजन चालित भूसा/ पुआल काटने की मशीन तथा उनको उठाने वाले उपकरण उपलब्ध न हो। एनडीपी -I के तहत विभिन्न प्रकार के फसल अवशेषों को काटने/ उठाने वाली मशीनों का प्रदर्शन किया जाएगा।

    1. फसल काटने की सादी मशीन – ये मशीन जमीनी स्तर पर चारा फसल काटती है तथा चारे को खेत में धूप में सुखाने या सीधे ही चरने के लिए छोड़ दिया जाता है अथवा हाथ से या मशीन से एकत्रित किया जाता है।

    2. स्वत उठाने वाली फसल काटने की मशीनः- ऐसी मशीन को ट्रैक्टर के एक ही फेरे में कई कार्य करने के हिसाब से डिजाइन किया जाता है।कई कार्य जैसे कि चारा कटाई, टुकड़े करने, ट्राली पर लोड करना, बंडल बनाना आदि ट्रैक्टर की शक्ति से एक ही बार में बिना किसी श्रमिक के स्वचालित रूप से हो जाते हैं। उपयोग तथा संलग्न पुर्जे के आधार पर इस फसल अवशेष (चारा) काटने की मशीन को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।

    बी-1. स्वचालित गाहना एवं लदान वाली फसल काटने की मशीन (गेहूं के भूसे या विशेषकर रबी फसल के लिए)

    बी-2 स्वचालित कटाई तथा लदान वाली फसल काटने की मशीन (बहु फसल सर्वव्यापी डिजाइन)

    बी-3 धान्य फसलों, हरा चारा तथा ठूंठ संलग्नक के लिए स्वचालित बांधने वाली या स्वचालित लाइन से फसल काटने की मशीन। ऐसी मशीनों को कंबाइन का इस्तेमाल कम करने वाली मशीन कहा जाता है।

    बी-4 चारे को एकत्रित करने, वातन तथा धूप में सूखाने के लिए पट्टी या फसल लाइनर  संलग्नक।

    बी-5 सर्वव्यापी डिजाइन वाले बहुफसल काटने की मशीनों का साइलेज बनाने, घास तथा हरे चारे में उपयोगिता के कारण पैसे की बेहतर कीमत मिलती है। प्रतिदिन 5 से 25 एकड़ काटने के लिए 5 से 75 एचपी क्षमता युक्ति- चारा कटाई यंत्र उपलब्ध है।

  2. फसल अवशेष गोदाम का प्रदर्शनः-

    भूसा प्रबंधन तथा भंडारण के लिए बुनियादी ढांचा भारत में निहायत ही उपेक्षित है। एनडीपी-I के तहत भूसा और उनकी गोलियां, गट्ठर, ब्लॉक तथा साइलेज को रखने के लिए सकल उद्देश्य के तहत गोदाम तथा बंकरों का प्रदर्शन किया जाएगा।

  3. फसल अवशेष समृद्धिकरण तथा सघनीकरण-

    फसल अवशेष भारत में जुगाली करनेवाले पशुओं का थोक मूल आहार है। फसल अवशेष देशभर में समान रूप से उपलब्ध नहीं है। कुछ क्षेत्रों में यह ज्यादा हैं जबकि कुछ में नियमित तौर पर कम उपलब्ध है। ऐसे क्षेत्रों में खल, चोकर, अनाज, गुड, घास, खनिज के साथ आहार सामग्री को आरक्षित कर फिर ब्लॉक या गोलियों का रुप में एकत्रित किया जा सकता है ताकि भंडारण और परिवहन लागत बचायी जा सके। इसके अलावा पशुओं की आवश्यकतानुसार संपूर्ण आहार या संपूर्ण मिश्रित आहार के रूप में संतुलित आहार की उत्पादकता में सुधार के लिए आपूर्ति की जा सकती है।