गांव आधारित दूध अधिप्राप्ति प्रणाली

गांव आधारित दूध अधिप्राप्ति प्रणाली

बढ़ती आय, शहरीकरण, खान-पान की बदलती आदतें, जनसंख्या में वृद्धि तथा निर्यात के अवसर जैसे विभिन्न कारणों से दूध की मांग बढ़ रही है। योजना आयोग के अनुमान और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगातार उच्च विकास में बाद में सुधार के आधार पर मिले आंकड़ों से यह अनुमान है कि 2016-17 (12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक में) में दूध की मांग करीब 15.5 करोड़ टन होगी और 2021-22 तक 20 करोड़ टन से अधिक। इस बढ़ती मांग को पूर्ण करने के लिए अगले 15 वर्षों में वार्षिक वृद्धि 4 प्रतिशत से अधिक की बनाए रखने की आवश्यकता है। इसलिए यह जरूरी है कि प्रवर्तमान झुंडों में प्रजनन और आहार पर ध्यान केन्द्रित कर उत्पादकता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक तरीके से तैयार की गई बहु राज्य पहल शुरू की जाए।

वैज्ञानिक एवं तकनीकी महत्व के पहलूओं के द्वारा दूध उत्पादन बढ़ाने के प्रयास  में     दुधारू पशुओं में आनुवंशिक संवर्द्धन (ब्रीडिंग) और दुधारू पशुओं को वैज्ञानिक पोषण कार्यक्रम शामिल हैं ।इसके लिए दूध उत्पादकों का उनके अतिरिक्त दूध की बिक्री संगठित क्षेत्र में करने के लिए अधिक से अधिक अवसर देकर समर्थित किया जाना आवश्यक है। इसके लिए जरूरत होगाः

  • मौजूदा डेरी सहकारी समितियों की खरीद प्रणाली का सुदृढीकरण और
  • उन क्षेत्रों में जहां सहकारी समितियों की उपस्थिति तथा खरीद कम हो वहां उत्पादक कंपनियों को प्रोत्साहन देना।

दूध संग्रहीकरण के उद्देश्य हैः

  • एक वैध खरीद प्रणाली बनाना जिसमें निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित हो।
  • अधिक से अधिक दूध उत्पादकों को संगठित क्षेत्र में लाकर एकत्रित दूध की गुणवत्ता सुनिश्चित करें।
  • सहकारी सिद्धांतों का पालन कर गांव स्तर के संस्थागत ढांचे अधिक बनाए तथा छोटे किसानों के हितों की सुरक्षा करें।
  • ग्रामीण दूध उत्पादकों को संगठित बाजार तक पहुंच प्रदान करें जिससे उनकी आय में वृद्धि हो।

एनडीपी-I के तहत प्रस्तावित दूध एकत्रीकरण गतिविधियों में दूध संग्रह, सप्लाई किए गए दूध की सर्वोत्कृष्ट गुणवत्ता की जांच मानकीकृत स्वचालित दूध संग्रह यूनिट (एएमसीयू) और डाटा आधारित दूध संग्रह यूनिट (डीपीएमसीयू) द्वारा और गांवों/गांवों के झुंड में ब्लाक दूध कूलर स्थापित कर दूध की गुणवत्ता में काफी हद तक सुधार।